The सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य Diaries

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कुंती ने एक वर्ष तक ऋषि की आदरपूर्वक सेवा की. कुंती के सेवाभाव से प्रसन्न होकर उन्होंने दिव्य दृष्टि से यह देख लिया कि उसका विवाह पांडु से होगा तथा उससे सन्तान नही हो सकती, इसलिए यह वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण करके उससे संतान प्राप्त कर सकती है.

कुंडल और कवच लेकर भागने लगे इंद्र कर्ण के कवच और कुंडल लेकर इंद्र वहां से तुरंत अपने रथ पर सवार होकर भागने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि कर्ण को उनकी असलियत का पता चले. लेकिन जैसे ही वे कुछ दूर चले उनका रथ जमीन में धंस गया. रथ के रूकते ही आकाशवाणी हुई. आकाशवाणी ने इंद्र की इस हरकत पर क्रोध जाहिर किया और इस हरकत को छल का नाम दिया. आकाशवाणी ने कहा कि इंद्र ने कर्ण की जान को खतरे में डाला है.

कर्ण की दानवीरता के भी अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। उनकी दानशीलता की ख्याति सुनकर इन्द्र उनके पास कुण्डल और कवच माँगने गये थे। कर्ण ने अपने पिता सूर्य के द्वारा इन्द्र की प्रवंचना का रहस्य जानते हुए भी उनको कुण्डल और कवच दे दिये। इन्द्र ने उसके बदले में एक बार प्रयोग के लिए अपनी अमोघ शक्ति दे दी थी। उससे किसी का वध अवश्यम्भावी था। कर्ण उस शक्ति का प्रयोग अर्जुन पर करना चाहते थे किन्तु दुर्योधन के निर्देश पर उन्होंने उसका प्रयोग भीम के पुत्र घटोत्कच पर किया था। अपने अन्तिम समय में पितामह भीष्म ने कर्ण को उनके जन्म का रहस्य बताते हुए महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का साथ देने को कहा था किन्तु कर्ण ने इसका प्रतिरोध करके अपनी सत्यनिष्ठा का परिचय दिया। भीष्म के अनन्तर कर्ण कौरव सेना के सेनापति नियुक्त हुए थे। अन्त में तीन दिन तक युद्ध संचालन के उपरान्त अर्जुन ने उनका वध कर दिया। कर्ण के चरित्र में आदर्शों का दर्शन उनकी दानवीरता एवं युद्धवीरता के युगपत प्रसंगों में किया जा सकता है। महाभारत का युद्ध

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जब राजकुमारी कुंती अपने पुत्र कर्ण की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो गयी, तब उन्होंने बड़े ही दुःख के साथ इस प्रकार जन्मे अपने नवजात बालक को एक टोकरी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया. इस प्रकार बहते – बहते यह हस्तिनापुर नगरी पहुँच गया और इस प्रकार अधिरथ नामक एक व्यक्ति को नदी में टोकरी में बहकर आता हुआ बालक दिखाई दिया और इस व्यक्ति ने इस बालक को अपने पुत्र के रूप में अपनाया.

महाभारत में अपनी वीरता के कारण जिस सम्मान से कर्ण का स्मरण होता है, उससे अधिक आदर उन्हें उनकी दानशीलता के कारण दिया जाता है. कर्ण का शुभ संकल्प था कि वह मध्याह्न में जब सूर्यदेव की आराधना करता है, उस समय उससे जो भी माँगा जाएगा, वह वचनबद्ध होकर उसको पूर्ण करेगा.

कर्ण के दो दाँत सोने के थे। उन्होंने निकट पड़े पत्थर से उन्हें तोड़ा और बोले-'ब्राह्मण देव!

जब १८-दिन का युद्ध समाप्त हो जाता है, तो श्रीकृष्ण, अर्जुन को उसके रथ से नीचे उतर जाने के लिए कहते हैं। जब अर्जुन उतर जाता है तो वे उसे कुछ दूरी पर ले जाते हैं। तब वे हनुमानजी को रथ के ध्वज से उतर आने का संकेत करते हैं। जैसे ही श्री हनुमान उस रथ से click here उतरते हैं, अर्जुन के रथ के अश्व जीवित ही भस्म हो जाते हैं और रथ में विस्फोट हो जाता है। यह देखकर अर्जुन दहल उठता है। तब श्रीकृष्ण उसे बताते हैं कि कर्ण के घातक अस्त्रों के कारण अर्जुन के रथ में यह विस्फोट हुआ है। यह अब तक इसलिए सुरक्षित था क्योंकि उस पर स्वयं उनकी कृपा थी और श्री हनुमान की शक्ति थी जो रथ अब तक इन विनाशकारी अस्त्रों के प्रभावो को सहन किए हुए था। महायोद्धा[संपादित करें]

महाभारत के युद्ध के समय जब कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध चल रहा था तो उस वक्त अश्वसेना नामक नाग कर्ण के बाण पर आ कर बैठ गया और कर्ण से बोला की तुम बाण चलाओ और मै बाण पर लिपटा रहूँगा और अर्जुन को काट लूँगा क्युकी अर्जुन द्वारा खंडव-परस्त के जंगलो में आग लगाने के कारण मेरी माँ उसमे जल गई थी

तेरहवे दिन के युद्ध में, कौरव सेना के प्रधान सेनापति, गुरु द्रोणाचार्य द्वारा, युधिष्ठिर को बन्दी बनाने के लिए चक्रव्यूह/पद्मव्यूह की रचना की गई। पाण्डव पक्ष में केवल कृष्ण और अर्जुन ही चक्रव्यूह भेदन जानते थे। लेकिन उस दिन उन्हें त्रिगर्त नरेश-बन्धु युद्ध करते-करते चक्रव्यूह स्थल से बहुत दूर ले गए। त्रिगत, दुर्योधन के शासनाधीन एक राज्य था। अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह में केवल प्रवेश करना आता था, उससे निकलना नहीं, जिसे उसने तब सुना था जब वह अपनी माता के गर्भ में था और उसके पिता अर्जुन उसकी माता को यह विधि समझा रहे थे और बीच में ही उन्हें नीन्द आ गई।

सारथी अधिरथ द्वार कर्ण को पुत्र रूप में पालना :

कर्ण को सूत पुत्र के नाम से भी जाना जाता है, पर वास्तविकता ये थी की कर्ण के माता और पिता कुंती और सूर्य थे

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